Monday, July 18, 2011

........क्या कर सकती हूँ मैं



चारो ओर
बहता हुआ
लाल-लाल रक्त
इधर-उधर तडपती
दर्द से छटपटाती
हथेलियों को भीचती-खोलती
फैली उंगलियों को देख
जाने कहाँ
आधार को खोजती
लाक्षागृह में तपती
आस-पास फैले मरघट को
साँसों में लिए
मौन चीत्कार की
मुमुक्षा समेटती
अपनी जाग्रत-सुषुप्त
सामर्थ्य को टटोलती
विनाश के जयघोष में
सृजन की मृत्यु को देखती
विध्वंश के मध्य
अग्नि फूल चुनती
सृष्टि की एक माँ
अपनी कोख में
सूर्य के अंकुरों को पालती !!


***हेमा***

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1 comment:

  1. हेमा दीक्षित जी
    सादर अभिवादन !

    बौद्धिकता से पूर्ण आपकी रचनाओं के लिए कुछ भी कहना कम होगा …
    साधुवाद ! हार्दिक मंगलकामनाएं !



    रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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