Saturday, April 19, 2014

डुबकियों के बहाने से ...




.... तो देखिये हुआ यूँ कि पानी तो था बहुत ठंडा ... इस मौसम में भी कुल्फी जमाने के लिए पर्याप्त ... लेकिन बयाना तो हम ले ही गए थे डुबकने का ...
सो हमने सब दोस्तों के नाम की तीन सामूहिक डुबकियाँ लगाई ...

तीन इसलिए कि एक तो हम थोड़े नालायक प्रकार के है ... बचपन से मनाही रही कोई भी शुभ काम तीन बार नहीं करना है ... तो हम बहुत सारे काम तीन ही बार करते चले आ रहे है ... जैसे हम सब्जी में नमक,हल्दी,मिर्च,अदि सभी कुछ तीन बार डालते है ...

दाल-चावल तीन-तीन मुट्ठी निकालेंगे ... चाय में पत्ती,चीनी दूध, पानी सब ही ऐसे पड़ती है कि तीन बार हो ही जाए ... एक वक़्त में घर में बनाई जाने वाली १२ रोटी की जगह तेरह रोटी बनाई जाती है ...

अधिकाँश कामों को जिनमें शुभ-अशुभ के विचार से सँख्या योग के हिसाब से कार्य करने होते थे सब मैंने बिगाड़ कर रखे ... सब्जी दाल चावल हर चीज दोहरा कर परोसने की हिदायत हुआ करती थी ... पर आदत और हठ ऐसी ठहर गई थी कि सब तीन ही बार परोसे जाते थे ...
डांट ,धौल-धप्पे गाहे-बगाहे चलते रहे पर हम यह शुभ-अशुभ के हर विचार का तियाँ-पाँचा कर ही डालते थे और आज तक हर चीज़ में तीन-तेरह कर ही देते है ...

अरे हाँ संदेशिया बक्से में दो मित्रों के अनुरोध थे उनके नाम पर प्रसाद लाने के और चढाने के ...
सो आज मौका पड़ा है तो बता देते है कि मंदिरों में हमारा आना-जाना हमने अपनी किशोरावस्था में ही प्रसाद और फूल-पत्ती की डलिया-दुन्नैया के साथ स्वत: प्रेरणा से बंद कर दिया था ... मंदिरों की भीड़-भाड़ में होने वाली अनुचित छेड़-छाड़ और नोच-खसोट की दुर्दशा से बचने के लिए उठाया गया यह कदम मेरी आज की गढ़न में एक बेहद अहम् एवं आधारभूत कदम सिद्ध हुआ ...

भव्य-खूबसूरत मोहिनी मूर्तियों, उनके स्थापत्य आदि के दर्शनों के लिए जरूर जाते है ...
हाँ उनसे जुड़ी कहानियाँ इत्यादि भी हमें खूब भाती है ...

अत: आप अपनी श्रृद्धा से मुझे पापी दोस्त की श्रेणी में रख सकते है ... इसका मैं कभी बुरा नहीं मानने वाली ... पर हम किसी भी मंदिर में पूजा या मनोकामना की दृष्टि से कभी भी नहीं जाते ... और प्रसाद आदि नही चढाते है तो लाने का सवाल भी नहीं उठता ...

वैसे ज्यादा बड़ी पोस्ट दो-चार दिन रुक कर लिखेंगे ...
आज तो बस इतना बताए देते है कि हरि-द्वार में इस बार पहुँचने पर हमने देखा कि धर्म और मोक्ष के नाम पर किसी शहर को किस कदर रौंदा जा सकता है ... और तकरीबन मौत के घाट कैसे उतारा जा सकता है ...

यह तस्वीर रात लगभग साढ़े दस बजे की है दिन भर और शाम में भी पूरनमासी (पूर्णिमा) स्नान के कारण बेहद भीड़ थी और मैं ऐसे विशिष्ट अवसरों या त्योहारों आदि पर धामिक स्थलों या घाटों पर कतई नही जाती हूँ ... अनुभवों ने सिखाया कि बचाव ,तकलीफ मोल ले लेने पर निदान से बेहतर है ...

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